शाबर मंत्र प्रयोग भाग 1

शाबर मंत्र का प्रभाव बन्दूक से निकली हुई गोली जैसी अचूक एवं प्रभावी होती है तथा शाबर मंत्रों की
साधना भी शास्त्रोक्त मंत्रों की अपेक्षा सरल तथा सौम्य होती है। शाबर मंत्र साधारण ग्राम्य भाषाओं में लिखे गये हैं। जिसे कोई भी व्यक्ति आसानी से समझकर प्रयोग कर सकता है। साथ ही साथ शाबर मंत्रों का प्रयोग पढ़े-लिखे लोग भी आसानी से कर सकते है।
जब प्राचीन काल के ग्रंथों में उल्लेखित शास्त्रोक्त मंत्रों का दुरूपयोग होने लगा तब महर्षि विश्वामित्र के द्वारा शास्त्रोक्त मंत्रों को श्रापित तथा किलीत कर दिया गया तब से शास्त्रोक्त मंत्र की साधना तथा प्रयोग से सामान्य जन वंचित होने लगे तथा विशेष गुरू कृपा से प्राप्त मंत्र ही साधकों के लिए फलदायी होते थे। तथा अनेकों प्रकार के कठिनाईयों के बावजूद सिद्धीयाँ प्राप्त होती थी तथा सामान्य साधक शास्त्रोक्त मंत्रों के प्रभाव से वंचित रह जाते थे।
यह देखकर भगवान शंकर द्वारा कलयुग के साधकों के हित को ध्यान में रखते हुए शाबर मंत्रों का निर्माण किया गया। उसके बाद नवनाथ संप्रदायों के द्वारा शाबर मंत्र के प्रचलन को आगे बढ़ाया गया।
शाबर मंत्रों की उत्पŸिा और रचना के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने जिस समय अजुर्न के साथ किरत वेश में युद्ध किया था उसी समय आगम चर्चा के दौरान माता पार्वती जी के प्रश्नों के उत्तर शिवजी ने दिये थे उन्ही भिन्न प्रदŸा मंत्रों को बाद में शाबर मंत्र कहा गया।
उसके बाद जब कलयुग प्रारंभ हो रहा था तब भगवान शंकर ने कलयुग के मनुष्यों के कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुये नाथ पंथ की स्थापना करने का विचार किया तथा इस कार्य में ब्रह्मतथा विष्णु भी सहमत हो गये।
भगवान शिव के इस विचार को क्रिया रूप में परिवर्तित करने के लिए ही महासती अनुसुइया को दिये गये वरदान के कारण उन तीनों ने अपने- अपने अंशद्वारा सती अनुसुइया के गर्भ से जन्म लिया। ब्रह्म के अंशरूप में चन्द्रमा शिव के अंश रूप में दुर्वासा ऋषि और विष्णु को अंश रूप में भगवान दŸाात्रेय का जन्म हुआ। बाद मेें भगवान दŸाात्रेय नाथ पंथ के आदि गुरू बने क्योंकि इनके अन्दर ब्रम्हा विष्णु और महेश तीनों देवताओं के अंश विद्यामान थे। मुख्यतः विष्णु का अंशरूप होने से भगवान विष्णु के चैतिस अवतारों में दŸाात्रेय अवतारों की गणना होती है।
फिर नवनाथों की उत्पति हुई तथा भगवान दŸाात्रेय द्वारा नवनाथों को शिक्षा दिक्षा प्रदान किया गया तथा योग विद्या, अस्त्र विद्या, मंत्र, तप इत्यादि विषयों में पारंगतता प्रदान की गई । इन नवनाथों के अन्दर उतनी क्षमता थी कि ये कुछ ही पल में कोई भी कार्य कर सकते थे, इनके पास आकाश गमन सिद्धि, पाताल गमन मृत संजीवनी विद्या परकाया प्रवेश जैसी हजारों सिद्धियाँ थी उन्हीं नवनाथों के द्वारा शाबर मंत्रों का विस्तार किया गया।
बाद में शाबर मंत्रों को सामान्यतः ग्रामीण बोलचाल पर प्रयोग होन वाले सामान्य भाषा में लिखा गया। इसलिए यह मंत्र सरल तथा तीव्र प्रभावी होता है। शाबर मंत्रों की खासियत यह है कि मंत्रों के आखिर में मंत्र से संबंधित देवी देवताओं के आन अथवा कसम दिया जाता है। जिससे देवी-देवताओं को कसम की मर्यादा रखने के लिए साधक के इच्छित कार्यांे को पूरा करना पड़ता है। आगे मैं कुछ शाबर मंत्रों के अलौकिक एवं दुर्लभ प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। जिससे सामान्य साधक अथवा पाठक प्रयोग में लाकर लाभ उठा सकते हैं। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

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